PM मत्स्य संपदा योजना और देश में ‘ब्लू इकोनॉमी’ से आया कितना बदलाव

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भारत ‘नीली क्रांति’ के साथ मछली उत्पादन में तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। आपको याद होगा साल 2014 में जब पीएम मोदी ने देश के किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प लिया था तो पहली बार ‘हरित क्रांति’ और ‘श्वेत क्रांति’ के साथ ‘नीली क्रांति’ यानि ‘ब्लू इकोनॉमी’ की बात की थी और आज देश ‘नीली क्रांति से अर्थ क्रांति’ की दूसरी वर्षगांठ मना रहा है। यानि सरकार तेजी से इस दिशा में आगे बढ़ रही है।

देश मना रहा ‘नीली क्रांति से अर्थ क्रांति’ की दूसरी वर्षगांठ 

शनिवार को केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ‘नीली क्रांति से अर्थ क्रांति’ की दूसरी वर्षगांठ का उद्घाटन किया गया। उल्लेखनीय है कि ब्लू इकोनॉमी के शुरू हो जाने से देश में लाखों मछुआरे सीधे तौर पर इस योजना का फायदा उठा सकते हैं। इसलिए इसे अर्थ क्रांति के साथ जोड़ा गया है। वैसे भी भारत इस समय मछली उत्पाद निर्यात में तेजी से प्रगति कर रहा है तो वहीं सरकार द्वारा भारत को गुणवत्ता सम्पन्न सी फूड प्रोसेसिंग हब में बदलने के सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। ऐसे में साफ है कि आने वाले समय में ब्लू इकोनॉमी आम इंसान के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी।

क्या होती है ब्लू इकोनॉमी ?

भारत के कुल व्यापार का बड़ा हिस्सा समुद्री मार्ग के जरिए होता है। ऐसे में इस योजना का मकसद देश की अर्थव्यवस्था को समुद्री क्षेत्र से जोड़ना तो है ही साथ ही ब्लू इकोनॉमी का मकसद पर्यावरण को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाना है। यानि पूरा बिजनेस मॉडल पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाया जाता है।

ब्लू इकोनॉमी कैसे काम करती है ?

ब्लू इकोनॉमी के तहत सबसे पहले समुद्र आधारित बिजनेस मॉडल तैयार किया जाता है, साथ ही संसाधनों को ठीक से इस्तेमाल करने और समुद्री कचरे से निपटने के डायनामिक मॉडल पर कम किया जाता है। पर्यावरण फिलहाल दुनिया में एक बड़ा मुद्दा है ऐसे में ब्लू इकोनॉमी को अपनाना इस नजरिए से भी बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। ब्लू इकोनॉमी के तहत फोकस खनिज पदार्थों समेत समुद्री उत्पादों पर होता है। समुद्र के जरिए व्यापार का सामान भेजना ट्रकों, ट्रेन या अन्य साधनों के मुकाबले पर्यावरण की दृष्टि से बेहद साफ-सुथरा साबित होता है।

आम आदमी के लिए कितनी फायदेमंद ?

पीएम मोदी भी अपने बयान में इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि मछुआरा समुदाय पूरी तरह से न सिर्फ समुद्री धन पर निर्भर हैं बल्कि इसके रक्षक भी हैं। इसके मद्देनजर सरकार ने तटीय इकोसिस्टम के संरक्षण और समृद्धि के लिए अनेक कदम उठाए हैं। जिसके तहत समुद्र में काम करने वाले मछुआरों की मदद, अलग मछली पालन विभाग, सस्ता लोन, मछली पालन के काम में लगे लोगों को किसान क्रेडिट कार्ड देना शामिल है। इससे कारोबारियों और सामान्य मछुआरों को मदद मिल रही है।

भारत के विकास में क्या है भूमिका ?

ज्ञात हो, मत्स्य पालन, प्राथमिक उत्पादक क्षेत्रों में एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जो हमारे देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में, विशेष रूप से ग्रामीण भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। एक ‘सनराइज सेक्टर’ के रूप में माना जाने वाला यह क्षेत्र समानता, जिम्मेदारी और समावेशी तरीके से विशाल क्षमता के उपयोग की परिकल्पना करता है। इसलिए भारत के विकास में इसकी अहम भूमिका समझी जाती है। एक तरफ जहां सरकार द्वारा मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है तो वहीं सरकार ब्लू इकोनॉमी पर भी फोकस किए हुए है। इससे एक बात तो साफ होती है कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तभी इन दोनों के विकास पर सरकार बराबर रूप से ध्यान दे रही है।

20 हजार करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई मत्स्य संपदा योजना 

”10 सितंबर  2020” को आत्मनिर्भर भारत के तहत मत्स्य पालन के क्षेत्र में आजादी के बाद की सबसे बड़ी योजना की शुरुआत पीएम मोदी के नेतृत्व में ”प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा” योजना के नाम से की गई। इस योजना का उद्देश्य था, 5 साल में करीब 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के निवेश के साथ इस सेक्टर की सूरत बदलना। योजना के लागू होने के बाद बीते 2 साल में मत्स्य पालन सेक्टर में उत्पादन से लेकर निर्यात अच्छी ग्रोथ देखी जा रही है। यह प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का ही करिश्मा है।

दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश

भारत आज पूरी दुनिया में सबसे बड़ा झींगा उत्पादक और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश बन चुका है। यही वजह है कि भारत के मत्स्य क्षेत्र में मुनाफे की भरपूर संभावनाएं हैं। यह बात वर्तमान सरकार भली-भांति जानती समझती है। इसलिए इस दिशा में मछली पालकों व किसानों के लाभ के लिए कार्य भी कर रही है। इसी उद्देश्य से साल 2015 में शुरू नीली क्रांति योजना और साल 2020 में 20 हजार करोड़ रुपए के निवेश वाली प्रधानमंत्री मत्स्य योजना से मछली उत्पादन में तेजी से वृद्धि हो रही है।

नई तकनीक से मिल रहा बड़ा फायदा  

नई तकनीक से इसमें बड़ा फायदा मिल रहा है। आर.ए.एस, बायोफ्लॉक और केज कल्चर के इस्तेमाल से मछली उत्पादकता बढ़ गई है। केवल इतना ही नहीं इस योजना में मछली किसानों और कारोबारियों की सुरक्षा के लिए बीमा तक शुरू किया गया है। वहीं देश में पहली बार मछली उद्योग से जुड़े जहाजों का भी बीमा शुरू हुआ है। इसके साथ ही सजावट मछली पालन और समुद्री खरपतवार संवर्धन से महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ है।

वित्त वर्ष 2024-25 तक योजना को किया जाना है लागू

आजादी के बाद जिन सेक्टर पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया, उसमें मछली पालन का सेक्टर भी शामिल था। आजादी के बाद से 2014 तक सिर्फ 3682 करोड़ रुपए का निवेश इस सेक्टर में किया गया, जबकि 2014 से 2024-25 तक पीएम मत्स्य संपदा योजना, नीली क्रांति योजना और फिशरीज इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट फंड सहित 30,572 करोड़ रुपए अनुमानित खर्च के साथ तेजी से काम चल रहा है। इस योजना को वित्त वर्ष 2024-25 तक लागू किया जाना है।

रोजगार सृजन

अकेले PM मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) से 55 लाख लोगों के लिए नए रोजगार सृजन का लक्ष्य 2025 तक रखा गया है। भारत में मछली पालन और जलीय कृषि के लिए मौजूद क्षेत्र और विशाल संभावनाओं से सम्पन्न व्यवस्थाओं का ही असर है कि सी-फूड का जो निर्यात 2020-21 में 1.15 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। भारत विश्व में 112 देशों को सी-सूड निर्यात करता है और विश्व में सी-फूड का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है।
ऐसे में मछली पालन शुरू करने के लिए सरकार द्वारा दी गई सब्सिडी, महिलाओं और अनुसूचित जाति को इस सेक्टर में व्यवसाय शुरू करने के लिए 60% अनुदान वाली प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का उपयोग कर नीली क्रांति को गति दें और अपनी सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार करने के साथ ही मछली उत्पादन में देश को नंबर एक बनाने के संकल्प को मजबूती दें।

भारत के मछली उत्पाद निर्यात में आई तेजी 

भारत का मछली निर्यात अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 57,586.48 करोड़ रुपए पर कायम है। कोविड-19 महामारी के कारण मत्स्य निर्यात में 2020-21 में गिरावट आई थी। उसके बाद से अब तक यह निर्यात रहा है। PM मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत एक लाख करोड़ रुपए की कीमत का निर्यात लक्ष्य तय किया गया जिसे हासिल करने के लिए, टिलापिया, ट्राउट, पनगेसियस, कोबिया, पोमपेनो और कई अन्य प्रजातियों की गुणवत्ता तथा उत्पादन बढ़ाकर निर्यात बास्केट को विविधता देने पर ध्यान दिया जा रहा है।

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