पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए पूरी दुनिया में जतन किए जा रहे हैं। भारत सरकार भी इस दिशा भी सबसे आगे बढ़ कर कार्य कर रही है। खास बात ये है कि अब लोग भी प्रदूषण के खिलाफ जागरूक होने लगे हैं और इस दिशा में कई इनोवेशन कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक किसान ने।
40 प्रतिशत तक कम हो जाएगी कोयले की खपत
मिर्जापुर जिले के फतेहपुर निवासी सुबाष किसान ने एक ऐसी तकनीक इजाद की है, जिसको उपयोग में लाया जाए, तो वाकई ईंट-भठ्ठों से होने वाला प्रदूषण कम हो सकता है। 35 से 40 प्रतिशत तक कोयले की बचत भी होगा। ईंट की लागत भी कम होगी। यही नहीं ईंट की क्वालिटी भी बेहतरीन होगी। दोयम या ईंट खराब होने शिकायत भी नहीं रहेगी।
भट्ठे में फायर ब्रिक्स व ग्लास वूल का किया गया उपयोग
सुबाष की तकनीक ग्लास वूल व फायर ब्रिक्स पर आधारित है। वर्तमान में जिस ईंट के भट्टे में ईंट पकाया जाता है। उसमें जितनी ऊष्मा का उपयोग होता है, उससे कहीं ज्यादे ऊष्मा वेस्ट हो जाती है, जिससे ईट पकने में देरी के साथ ईंधन (कोयला) की खपत भी ज्यादे होती है, लेकिन इस तकनीकी में फायर ब्रिक्स से भठ्ठी की दीवारों की चुनाई कर देते हैं।
तकनीक से ईंट की गुणवत्ता के साथ आर्थिक बचत भी
फायर ब्रिक्स की खासियत यह है कि वह ऊष्मा को संतुलित (बैलेंस) करती है। इसके बाद फायर ब्रिक्स की दीवार के बाहरी ओर ग्लास वूल (सिरेमिक वूल) से परत बनाया दिया जाता है। ग्लास वूल का भठ्ठी के चारों ओर का घेरा ऊष्मा बाहर नहीं निकलने देगी। यानी टेंपरेचर लास पूरी तरह से बंद हो जाएगा। इससे ईंट को पकाने के लिए एक समान और अधिक ऊर्जा प्राप्त होगी। जिससे ईंट भी उच्च क्वालिटी हो पक कर भठ्ठी से बाहर निकलेगा। आर्थिक बचत के साथ पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी।
बीएचयू आईआईटी ने कराया पेटेंट
किसान सुबाष सिंह के आइडिया को बीएचयू आईआईटी सिरेमिक विभाग के हेड रहे प्रो. प्रदीप कुमार मिश्र के निर्देशन में सिरामिक विभाग के प्रो. जेपी चक्रवर्ती ने बीएचयू में डेमो किया। इससे पहले उनके गांव फत्तेपुर जाकर आसपास संचालित ईंट-भठ्ठों को देखा। डेमो रिपोर्ट के आधार पर प्रो.मिश्र के निर्देशन में एग्रीमेंट किया गया। एग्रीमेंट के आधार पर सुबाष के आइडिया को बीएचयू आईआईटी व सुबाष का संयुक्त रूप से पेटेंट के लिए 6 जून 2018 को आवेदन किया गया। 23 फरवरी 2022 को पेटेंट जारी किया गया।
पॉल्यूशन बोर्ड भी कर चुका है परीक्षण
किसान सुबाष सिंह की मानें तो इफको प्रचार-प्रसार अधिकारी पुनीत कुमार मिश्रा की सलाह पर अपनी फायर ब्रिक्स व ग्लास वूल से भठ्ठी बनाने व प्रदूषण कम करने की आइडिया को प्रदूषण बोर्ड लखनऊ के सामने पेश किया गया। इस पर बोर्ड के अधिकारियों ने क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इकाई मीरजापुर-सोनभद्र के अधिकारियों को दावे की परख करने की जिम्मेदारी सौंपी। इस पर सुबाष ने प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों से मिलकर अपने आइडिया को शेयर किया, जिसके आधार पर क्षेत्रीय प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों ने ऑनलाइन रिपोर्ट फाइल करते हुए पेटेंट कराने की सलाह दी।
आसान नहीं था तकनीक पेटेंट कराना
महज ढाई बीघे जमीन के मालिक किसान सुबाष अपने आइडिया को पेटेंट कराने के लिए दर-दर भटकते रहे। पेटेंट में आने वाले खर्च को सुनकर एक बार उन्होंने अपनी खोज को छोड़ देने की सोची। इसी बीच किसी ने उन्हें मीरजापुर के तत्कालीन जिलाधिकारी विमल कुमार दुबे से मिलने को कहा। लोगों की सुझाव पर सुबाष डीएम से मिले। उन्हें अपना आइडिया बताया। गंभीरतापूर्वक सुनने के बाद डीएम ने खुद पहल करते हुए बरकछा स्थित बीएचयू साउथ कैंपस के अधिकारियों से बात की। साउथ कैंपस से सुबाष के जुगाड़ू खोज को वारणासी बीएचयू परिसर स्थित आईआईटी को भेजा गया। बीएचयू के सिरामिक वैज्ञानिकों ने सकारात्मक पहल के साथ जांच-परख के बाद आइडिया को आगे बढ़ाया जिसका परिणाम सबके सामने है।
हिंडालको की भठ्ठी में तप कर मिला आइडिया
सुबास को यह आइडिया सोनभद्र जिले के रेनुकूट स्थित हिंडालको फैक्ट्री की धधकती अल्युमिनियम बनाने की भठ्ठी (पार्ट रूम) की आग में तप कर मिला। कक्षा 10वीं तक पढ़ाई करने वाले सुबाष की मानें तो 15 साल तक बाक्साइड गलाने की भठ्ठी के सामने 120 डिग्री टेंपरेचर में दैनिक मजदूर के रूप में काम करने के बाद आइडिया के साथ कठिन काम से हमेशा के लिए तौबा कर लिया।
इफको कर चुका है पुरस्कृत
नए और समाज के लिए लाभकारी आइडिया के लिए सुबाष फायर ब्रिक्स व ग्लास वूल से प्रदूषण कम करने की तकनीक को इफको अपने 85वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में वर्ष-2017 में एक लाख रुपये का पुरस्कार भी प्रदान कर चुका है। योजना में देश भर के किसानों से नई खोज के लिए शोध पत्र आमंत्रित किए गए थे।