भारत अनेक धार्मिक, सांस्कृति और लोकाचारों का केंद्र है। यहां का हर कोना अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। उन्हीं विशेषताओं को वैश्विक मान्यता देने के लिए केंद्र सरकार प्रयासरत है। साल 2021 में यूनेस्को ने कोलकाता की दुर्गा पूजा को अपनी अमूर्त धरोहर लिस्ट में शामिल कर लिया है। खास बात ये है कि इस बार ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ दुर्गा पूजा को देखने यूनेस्को के प्रतिनिधि एक सितंबर को कोलकाता जाएंगे। वहीं खास बात ये भी है कि हाल ही में भारत को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए यूनेस्को के 2003 कन्वेंशन की अंतर सरकारी समिति का सदस्य चुना गया है। आइए जानते हैं क्या है ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ और सदस्य देश क्या होता है कार्य।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत क्या है
इसे जीवित सांस्कृतिक विरासत भी कहा जाता है। हमें अपने पूर्वजों से अनेक संस्कृति मिली है और पीढ़ी दर पीढ़ी ये आने वाली पीढ़ी को सौंपते जाते हैं। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत ऐसी ही प्रथाएं, अभिव्यक्तियां, ज्ञान और कौशल हैं, जिन्हें समुदाय, समूह तथा कभी-कभी व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में पहचानते हैं। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के तहत मौखिक परंपराएं, कला प्रदर्शन, सामाजिक प्रथाएं, अनुष्ठान और उत्सव कार्यक्रम, प्रकृति और ब्रह्मांड से संबंधित ज्ञान और अभ्यास, पारंपरिक शिल्प कौशल आदि आते हैं।
विरासत में उन्हीं मिली परंपराओं को सहेज कर रखने के साथ इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने की आवश्यकता है। साथ ही दुनिया के लोग एक दूसरे की विरासत को समझें और उसे फलने फूलने में मदद देना बेहद जरूरी है। इसी उद्देश्य से साल 2003 में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की शुरुआत की गई।
विरासत की सूची में उच्च स्थान पर भारत
यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में 14 धरोहरों के साथ भारत अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में भी उच्च स्थान पर है। यूनेस्को के सचिव टिम कर्टिस ने बताया कि अगले साल के लिए भारत की तरफ से गरबा का प्रस्ताव भेजा गया है, जिसका अवलोकन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि यूनेस्को का मकसद अपनी सूची में मौजूद अमूर्त विरासत विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने का है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिष्ठित प्रतिनिधि सूची में भारत की अब 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें शामिल हैं।
ये हैं 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
1-रामलीला को 2008 में
2-वैदिक मंत्रों के पाठ करने की परंपरा
3-कूडियाट्टम-केरल
4-रम्माण त्योहार-उत्तराखंड
5-मुडियेट्टु-केरल
6-कालबेलिया-राजस्थान
7-छऊ नृत्य
8-बौद्ध धर्म ग्रंथों के पाठ करने की परंपरा
9-संकीर्तन- मणिपुर
10-पंजाब-ठठेरा धातु हस्तशिल्प
11-योग
12-नवरोज
13-कुंभ मेला
14-कोलकाता की दुर्गा पूजा
सांस्कृतिक विरासत की संख्या को बढ़ाने के प्रयास
वहीं देश की कई अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को संस्कृति मंत्रालय सूचीबद्ध करने की योजना बना रहा है। इस संबंध में इस साल देशभर में छह कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा। दरअसल,सूची में भारत की सांस्कृतिक विरासत की संख्या को बढ़ाने के लिए यूनेस्को में भेजे जाने वाले प्रस्ताव के डोजियर को तैयार करना बेहद जरूरी है। डोजियर को तैयार करने के लिए कई बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए जिसकी जानकारी राज्यों की संबंधित एजेंसियों को देने के लिए देशभर में छह से अधिक कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला से राज्य सरकार अपने-अपने राज्यों और शहरों की अनूठी अमूर्त-मूर्त विरासत को दुनिया के सामने पेश कर सकेंगी।
भारत है अंतर सरकारी समिति का सदस्य
हाल ही में भारत को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए 2022-2026 के लिए यूनेस्को के 2003 कन्वेंशन की अंतर सरकारी समिति का सदस्य चुना गया है। अंतर सरकारी समिति के लिए ये चुनाव 2003 कन्वेंशन की 9वीं महासभा के दौरान 5 से 7 जुलाई 2022 को पेरिस स्थित यूनेस्को मुख्यालय में हुए। केंद्रीय पर्यटन, संस्कृति एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया कि एशिया-प्रशांत समूह के भीतर खाली चार सीटों के लिए भारत, बांग्लादेश, वियतनाम, कंबोडिया, मलेशिया और थाईलैंड इन छह देशों ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी। यहां उपस्थित और मतदान कर रहे 155 देशों के दलों की ओर से भारत को 110 वोट मिले। 2003 कन्वेंशन की अंतर सरकारी समिति में 24 सदस्य होते हैं।
कन्वेंशन की अंतर सरकारी समिति के कार्य
इस अंतर सरकारी समिति के कुछ मुख्य कार्यों में कन्वेंशन के उद्देश्यों को बढ़ावा देना, सर्वोत्तम प्रथाओं को लेकर मार्गदर्शन देना और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के उपायों पर सुझाव देना शामिल है। ये समिति अपनी सूचियों में अमूर्त विरासत को शामिल करने के राष्ट्र दलों के अनुरोधों और साथ-साथ कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं के प्रस्तावों को भी जांचती है।
पहले भी भारत रह चुका है सदस्य
इससे पहले भारत ने इस कन्वेंशन की अंतर-सरकारी समिति के सदस्य के रूप में दो कार्यकाल पूरे किए हैं। एक 2006 से 2010 तक और दूसरा 2014 से 2018 तक। अपने 2022-2026 के कार्यकाल के लिए भारत ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक स्पष्ट विजन तैयार किया है। भारत जिन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा, उनमें सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना, अमूर्त विरासत के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत पर अकादमिक अनुसंधान को बढ़ावा देना और कन्वेंशन के कार्यों को संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप मिलाना शामिल है।