अच्छी खबर: स्वास्थ्य सेवाओं पर जेब खर्च में आई 16 फीसदी की कमी

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बीते 8 साल में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च के बोझ को कम करने में सबसे बड़ी भूमिका पीएम मोदी के नेतृत्व में बनी केंद्र सरकार ने निभाई है। गरीबों के लिए सबसे बड़ा बोझ और अभिशाप  समझा जाने वाला स्वास्थ्य खर्च इनके कार्यकाल में ही दूर हुआ। असंख्य परिवार ऐसे भी रहे जो अपने परिजनों के इलाज के लिए पानी की तरह पैसा बहा-बहाकर बदहाली की जीवन काटने को मजबूर हो गए थे, उनके जीवन में खुशहाली वापस लौटी। जी हां, अब इनका महंगे से महंगा इलाज भी चंद रुपयों में हो जाता है। यानि स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च अब न के बराबर है। यही कारण है कि देश में स्वास्थ्य पर लोगों के जेब से होने वाले खर्च में 16 फीसदी की कमी आई है। दरअसल स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च का वहन भारत सरकार उठा रही है।

देश में सरकार के स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा 40.6 फीसदी

भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (एनएचए) अनुमानों के मुताबिक सरकार का स्वास्थ्य पर देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में 1.15 फीसदी (2013-14) से बढ़कर 1.28 फीसदी (2018-19) हो गया है। सोमवार को जारी 2018-19 की एनएचए रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल व्यय में सरकार के स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा 28.6 फीसदी (2013-14) से बढ़कर 40.6 फीसदी (2018-19) हो गया है।

स्वास्थ्य पर सरकार के खर्च में हुई बढ़ोतरी

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक साल 2018-19 का एनएचए अनुमान से स्वास्थ्य पर सरकार के खर्च में बढ़ोतरी के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में बढ़ते विश्वास की भी झलक मिलती है। स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा खर्च का हिस्सा भी बढ़ा है, जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएं और सरकारी कर्मचारियों को दी जाने वाली चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल हैं। कुल स्वास्थ्य व्यय के रूप में वृद्धि 2013-14 में 6 फीसदी से बढ़कर 2018-19 में 9.6% हो गई है।

स्वास्थ्य पर आम जनता की जेब से होने वाले खर्च में आई कमी

सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के लिए सरकार के प्रयासों की वजह से कुल स्वास्थ्य व्यय के हिस्से के रूप में लोगों की तरफ से जेब खर्च (ओओपीई) के तौर पर होने वाला व्यय 2013-14 में 64.2 फीसदी की तुलना में 2018-19 में 48.2 फीसदी रह गया। यहां तक कि प्रति व्यक्ति ओओपीई के मामले में भी 2013-14 से 2018-19 के बीच 2,336 रुपए से घटकर 2,155 रुपए हो गया है। मंत्रालय ने कहा कि इस गिरावट का एक कारण सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग में वृद्धि और सेवाओं की लागत में कमी है।

कुल सरकारी खर्च का 55.2% प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर हो रहा खर्च

NHA की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि रिपोर्ट से राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के तहत निर्धारित सार्वभौमिक स्वास्थ्य लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को दर्शाती है। उन्होंने बताया कि कुल सरकारी खर्च का 55.2% प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च हो रहा है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग में वृद्धि से सेवाओं की लागत में आई कमी  

बता दें, सरकारी कोशिशों और स्वास्थ्य सेवा मजबूत होने के कारण लोगों की सेहत पर होने वाले खर्च में 16% की गिरावट आई है जो देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सरकार की प्राथमिकता को दर्शाता है। सरकार के स्वास्थ्य क्षेत्र में वृद्धि की सही दिशा में आगे बढ़ रही है, क्योंकि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा पर अधिक जोर दिया गया है।

55.2 फीसदी हो गया प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का हिस्सा

रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का हिस्सा 2013-14 में 51.1 फीसदी से बढ़कर 2018-19 में 55.2 फीसदी हो गया है। प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सुविधाओं का कुल सरकारी स्वास्थ्य व्यय में 80 फीसदी हिस्सेदारी है। रिपोर्ट के मुताबिक निजी क्षेत्र का तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में हिस्सा बढ़ा है, लेकिन प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र में गिरावट आई है।

‘एक राष्ट्र का स्वास्थ्य’ पर फोकस

स्पष्ट है कि सरकार ”एक राष्ट्र का स्वास्थ्य” के मद्देनजर व्यापक स्तर पर अपने नागरिकों तक समान, सस्ती और विश्वसनीय स्वास्थ्य व्यवस्था तक पहुंच बनाने की दिशा में काम कर रही है। जब सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय बढ़ता है तो कुल स्वास्थ्य व्यय में हिस्सेदारी के रूप में ओओपीई में स्पष्ट रूप से गिरावट आती है। स्वास्थ्य पर होने वाले भारी खर्च के चलते होने वाले ओओपीई से कमजोर वर्गों के गरीब की श्रेणी में खिसकने का खतरा बढ़ जाता है। एक देश में जीवन प्रत्याशा प्रति व्यक्ति सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय से सकारात्मक रूप से मेल खाती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि वित्तीय परिप्रेक्ष्य से भारत दुनिया में ओओपीई के सबसे ऊंचे स्तर वाले देशों में से एक है, जो प्रत्यक्ष रूप से भारी व्यय और गरीबी में योगदान कर रहा है। लेकिन आज सरकार की तमाम स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं से भारत की बड़ी आबादी को सस्ता उपचार मुहैया हो रहा है।

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