जानें, क्यों मनाते हैं होलिका दहन

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हमारे देश के त्योहार संस्कृति, सभ्यता के द्योतक हैं। सभी त्योहारों के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। इन दिनों फागुन के महीने में सभी को होली का इंतजार है। रंगों की होली से एक दिन पहले हम होलिका दहन करते हैं। क्यों मनाते हैं व क्या है इसकी पौराणिक कथा…

प्रहलाद और भगवान विष्णु की कथा

होली के पर्व में होलिका दहन का विशेष महत्व है। होलिका दहन का जिक्र होते ही विष्णु-भक्त प्रह्लाद की पौराणिक कथा हमारे सामने आ खड़ी होती है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार अपने पुत्र प्रह्लाद की विष्णु – भक्ति से अप्रसन्न हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के लिए अनेक षड्यंत्र रचे, किंतु वो सभी में असफल रहा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने की कोशिश की। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं। अंत में अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए स्वयं भगवान विष्णु नरसिंह रूप में अवतार लेते हैं और अत्याचारी हिरण्यकश्यप का वध करते हैं।

भगवान शिव और माता पार्वती की कथा

हिमालय पुत्री पार्वती की इच्छा थी कि उनका विवाह भगवान शिव से हो, पर शिवजी काफी समय से अपनी तपस्या में लीन थे। पार्वती की इस दुविधा को देख कामदेव उनकी सहायता को आए। उन्होंने भगवान शिव पर पुष्प बाण चलाया, जिससे उनकी तपस्या भंग हो गयी। लेकिन शिवजी क्रोधित हो उठे और अपनी तीसरी नेत्र खोल दी, जिससे शिव जी के क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। तभी शिवजी ने पार्वती की आराधना को देखा और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कथा के आधार पर होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

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