‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत भारत में ही बनेंगी तीनों सेनाओं के लिए 4.2 लाख कार्बाइन

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देश की सुरक्षा जिम्मेदारी सेनाओं के हाथ में होती है। आज के दौर में बदलते सुरक्षा के तौर-तरीकों के साथ-साथ सुरक्षाबलों लिए उपयुक्त उपकरणों को आधुनिक तकनीकों से अपग्रेड करना अति आवश्यक हो गया है। सेनाओं को सुरक्षा के लिए उपयुक्त उपकरण की उपलब्धता और उनकी संचालन क्षमता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयासरत है। डिफेंस सेक्टर में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बीते आठ साल में अथक प्रयास किए गए है। केंद्र सरकार के प्रयास से सेनाओं के लिए अत्यंत जरूरी 4.2 लाख स्वदेशी कार्बाइन का निर्माण ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अंतर्गत तीनों सेनाओं के लिए किया जाएगा। परियोजना के लिए 5,000 करोड़ रुपए से अधिक का आवंटन होना है, जिसमें सेना, नौसेना और वायु सेना इस हथियार के डिजाइन और विकास में एक साथ काम करेंगी।

तीनों सेनाएं मिलकर करेंगी काम

‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में तीनों सेनाओं के लिए 4.2 लाख स्वदेशी कार्बाइन का निर्माण किया जाएगा। सेना को कार्बाइन के एक चौथाई हिस्से की तत्काल जरूरत है, इसलिए फास्ट ट्रैक प्रक्रिया के तहत यह प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी की जाएगी। इसके लिए सेना, नौसेना और वायुसेना इस हथियार के डिजाइन और विकास में एक साथ काम करने की योजना बना रही है। रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी उत्पादों को बढ़ोतरी देने के उद्देश्य से यह निर्माण प्रक्रिया काफी अहम है। इसी बीच दो साल पहले रक्षा मंत्रालय ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत रक्षा उद्योग को मजबूत करने के लिए हथियारों के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया।

आत्मनिर्भरता के लिए फैसला अहम

दरअसल, केंद्र सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए अहम फैसला लेते हुए कई आयात अनुबंधों को रद्द कर दिया था। भारतीय सेना की जरूरतों को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात से सीबीक्यू कार्बाइन और दक्षिण कोरिया से सेल्फ प्रोपेल्ड एयर डिफेंस गन मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिए 2.5 अरब डॉलर से अधिक का सौदा तय किया गया था। यूएई की हथियार निर्माता कंपनी काराकल को सेना के लिए 93,895 क्लोज क्वार्टर कार्बाइन (सीबीक्यू) की आपूर्ति के लिए 2018 में शॉर्टलिस्ट किया गया था। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इस कंपनी ने फास्ट ट्रैक खरीद के लिए सबसे कम बोली लगाई थी। सितम्बर, 2020 में हुई बैठक में 2.5 अरब डॉलर से अधिक के दोनों आयात अनुबंधों को रद्द कर दिया गया। यूएई की कंपनी काराकल से 95 हजार कार्बाइन का सौदा रद्द करने के बाद इनके निर्माण स्वदेशी रूप से करने के लिए तेजी से काम आगे बढ़ा है।

निजी क्षेत्र से ली जाएगी मदद

इतनी बड़ी संख्या में कार्बाइन के उत्पादन में समय लगेगा, इसीलिए यह परियोजना निजी या सार्वजनिक क्षेत्र के दो निर्माताओं के साथ अनुबंध किए जाने की योजना है। 4 लाख से अधिक कार्बाइन के उत्पादन में लगने वाले समय को कम करने के लिए निजी या सार्वजनिक क्षेत्र के दो निर्माताओं को यह अनुबंध आवंटित करने की योजना है। इसका मतलब यह है कि सबसे अच्छी बोली वाली फर्म को 2 लाख से अधिक कार्बाइन बनाने का ऑर्डर मिल सकता है, जबकि दूसरी फर्म के साथ शेष कार्बाइन बनाने का अनुबंध किया जायेगा। इसके पीछे प्राथमिकता कार्बाइन की जल्द से जल्द आपूर्ति करने की होगी। आम तौर पर अनुबंध करने में 3 साल से अधिक समय लगता है लेकिन सशस्त्र बलों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह अनुबंध आने वाले दिनों में हो सकते हैं।

स्वदेशी रूप से हो रहा निर्माण

केंद्र सरकार ने 4 दिसंबर, 2021 को भारत में कलाश्निकोव शृंखला की एके-203 राइफलों का निर्माण करने को मंजूरी दी थी। इसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने 06 दिसम्बर को द्विपक्षीय चर्चा के बाद रूसी असॉल्ट राइफल एके-203 डील को अंतिम रूप दिया। भारत ने रूस के साथ एके-203 असॉल्ट राइफल के लिए 5,124 करोड़ रुपए के सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं। रूस के सहयोग से उत्तर प्रदेश के अमेठी स्थित कोरवा ऑर्डिनेंस फैक्टरी में छह लाख से अधिक असॉल्ट राइफलों का उत्पादन किया जाना है। यह सौदा उस समय हुआ, जब भारत रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ पर रूप से जोर दे रहा है।

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