शांति और समृद्ध पूर्वोत्तर की दिशा में एक और माइलस्टोन, असम-मेघालय का 50 साल पुराना विवाद सुलझा

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भारत के नक्शे पर पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से दक्षिण को एक नजर से देख सकते हैं, लेकिन अगर पिछले 7 साल से पहले की वास्तविकता देखें, तो भारत के पूर्वोत्तर राज्य, विकास और कनेक्टिविटी से काफी दूर हो गये थे। मगर आज पूर्वोत्तर राज्य अपने विकास की नई इबारत रहे हैं। दरअसल पूर्वोत्तर क्षेत्र का विकास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में से सबसे ऊपर है। आतंक के साये से निकल कर विकास का ग्रोथ इंजन बनने का पूर्वोत्तर का सफर पीएम मोदी की दूर दृष्टि और प्रतिबद्धता का प्रमाण है। इसी कड़ी में एक और ऐतिहासिक समझौता जुड़ गया  है। दरअसल, असम और मेघालय सरकार के बीच मंगलवार को पिछले 50 वर्षों से चले आ रहे लंबित सीमा विवाद को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

70 प्रतिशत भाग का समाधान

मौके पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पूर्वोत्तर के विकास के लिए जरूरी है कि वहां के राज्यों के बीच सीमा विवाद का समाधान हो और सशस्त्र विद्रोही अपने हथियार डाल मुख्य धारा से जुड़ें। उन्होंने अपने कार्यकाल में दोनों विषयों पर प्रयास किए हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम निकले हैं। असम मेघालय की तरह ही पूर्वोत्तर के अन्य राज्य भी राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ अपने विवादों का समाधान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज असम और मेघालय के बीच हुए समझौते से दोनों राज्यों के बीच सीमा से जुड़े विवाद का 70 प्रतिशत भाग का समाधान हो गया है। आशा है कि दोनों राज्य निकट भविष्य में अपने बाकी बचे विवाद विषयों को समाधान कर लेंगे।

क्या था विवाद

मेघालय को 1972 में असम से अलग राज्य के रूप में बनाया गया था। इसके बाद से ही दोनों राज्यों के बीच साझा 884.9 किमी लंबी सीमा के विभिन्न हिस्सों में 12 क्षेत्रों से संबंधित विवाद पैदा हुए थे। दोनों राज्यों के बीच की सीमा में कई बार तनाव भी उपजा है।
मेघालय और असम के बीच 12 क्षेत्रों को लेकर विवाद था। ऐसे में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को 31 जनवरी को गृह मंत्रालय द्वारा जांच और विचार के लिए एक मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। असम और मेघालय की सरकारें अपनी 884 किलोमीटर से जुड़े 12 विवाद बिन्दुओं में से छह के हल करने का एक मसौदा प्रस्ताव लेकर आई थीं। पहले चरण में छह स्थानों – ताराबारी, गिजांग, हाहिम, बोकलापारा, खानापारा-पिलंगकाटा और रातचेरा में सीमा विवाद को हल करने के लिए हस्ताक्षर किया गया। इसमें 36.79 वर्ग किमी भूमि के लिए प्रस्तावित सिफारिशों के अनुसार, असम 18.51 वर्ग किमी और शेष 18.28 वर्ग किमी मेघालय को मिलेगा। इसी के तहत छह क्षेत्रों को लेकर विवाद का समाधान कर लिया गया है।

दोनों राज्यों के सीएम ने क्या कहा

इसे लेकर मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने कहा कि पिछले 50 वर्षों से यह सीमा विवाद चला आ रहा था, एक बड़ा वर्ग और नेतृत्व इसका समाधान चाह रहा था। केन्द्रीय नेतृत्व की पहल और राजनीतिक इच्छाशक्ति से यह संभव हो पाया है।

वहीं असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सभी पूर्वोत्तर राज्यों के सीमा संबंधित विषयों का समाधान चाहते हैं। उन्होंने कहा कि समाधान खोजने की प्रक्रिया में हमने एक- एक विवाद के बिन्दु पर चर्चा की। इसके बाद बाकी दूसरे चरण का काम शुरू होगा। अगले छह-सात महीने में समाधान खोजने का काम पूरा होगा।

सीमा विवाद विकास के लिए चुनौती

बता दें कि विशाल प्राकृतिक संसाधनों और महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति के बावजूद, उत्तर-पूर्वी राज्य भारत के अन्य राज्यों के समान आर्थिक विकास से अलग-थलग पड़ा था, जिसे वर्तमान की केंद्र सरकार ने समझा। उग्रवाद, राजनीतिक संघर्ष और जातीय संघर्ष जैसी चुनौतियों से जूझने के अलावा, इस सीमा विवाद एक बड़ी चुनौती बनती जा रही थी। केंद्र सरकार ने इस बात पर ध्यान दिया और उग्रवाद, राजनीतिक संघर्ष से संबंधित कई समझौते किए, लेकिन सीमा विवाद राज्य के विकास में बाधा बनते हैं। इसलिए उनका सामाधान भी जरूरी है और इसका समाधान भी शुरू हो गया है।
गौर करें तो पिछले तीन वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने उग्रवाद को समाप्त करने और पूर्वोत्तर के राज्यों में स्थायी शांति के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। गृहमंत्री के मुताबिक 2019 से 2022 तक का सफर देखे तो उत्तर पूर्व में शांति स्थापित करने में बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं।

पूर्वोत्तर में शांति के लिए केंद्र सरकार की पहल

-त्रिपुरा में उग्रवादियों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अगस्त 2019 में NLFT (SD) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसने त्रिपुरा को एक शांत राज्य बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया।
–23 साल पुराने ब्रू-रियांग शरणार्थी संकट को हमेशा के लिए हल करने के लिए 16 जनवरी, 2020 को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अंतर्गत 37,000 से ज्यादा आदिवासी भाई-बहन जो कठिन जीवन जी रहे थे, वो आज सम्मानपूर्वक जीवन जी रहे हैं।
– 27 जनवरी 2020 को हस्ताक्षरित बोडो समझौता किया गया, जिसने असम के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए 50 साल पुराने बोडो मुद्दे को हल किया। असम और भारत सरकार ने इस समझौते की 95 प्रतिशत शर्तों को पूरा कर लिया है और आज बोडोलैंड एक शांत क्षेत्र के रूप में जाना जाता है और विकास के रास्ते पर अग्रसर है।
– 4 सितंबर 2021 को असम के कार्बी क्षेत्रों में लंबे समय से चले आ रहे विवाद को हल करने के लिए कार्बी-आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अंतर्गत लगभग 1000 से अधिक हथियारबंद कैडर आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में शामिल हुए।
–2019 से 2022 तक 6900 से ज्यादा हथियारबंद कैडर ने आत्मसमर्पण किया और लगभग 4800 से ज्यादा हथियार प्रशासन के सामने सरेंडर किए गए। ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

देश के विकास का ड्राइविंग फोर्स बनेगा पूर्वोत्तर

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पीएम मोदी के शांत और समृद्ध उत्तरपूर्व के स्वप्न को साकार करने के लिए आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में प्रयास करने चाहिएं। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी उत्तरपूर्व को अष्टलक्ष्मी कहते हैं और इन प्रयासों से पूर्वोत्तर भारत की मुख्यधारा में तो शामिल होगा ही, साथ ही देश के विकास का ड्राइविंग फोर्स भी बनेगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने कई और अभियान चलाए हैं जिनमें नारकोटिक्स मुक्त, बाढ़ मुक्त और घुसपैठिए मुक्त उत्तरपूर्व शामिल हैं। इन सभी मोर्चों पर समयबद्ध तरीके से भारत सरकार और नॉर्थ ईस्ट की सरकारें आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने जिस दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया है उसी प्रकार सभी राज्यों के साथ चर्चा करके हम उत्तर पूर्व को विवाद मुक्त बनाएंगे।

पूर्वोत्तर राज्यों में अवसर की एक समृद्ध क्षमता

पूर्वोत्तर राज्यों में अवसर की एक समृद्ध क्षमता है, जिसका उपयोग भूमि, जल और वायु के माध्यम से उचित संपर्क के बाद ही किया जा सकता है। इस क्षेत्र का भूगोल इसे बांग्लादेश, म्यांमार और आगे आसियान देशों के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान करता है। इसलिए, यही एक कारण है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के आधार समझा गया है। समान संस्कृतियां, भाषाएं, परंपराएं और रीति-रिवाज उत्तर-पूर्वी भारत और पड़ोसी देशों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं। इस प्रकार, नीति निर्माताओं का लक्ष्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सभी विवाद सुलझा कर राज्यों के भीतर रेल, सड़क, हवाई और इंटरनेट कनेक्टिविटी को बढ़ाना है। मजबूत कनेक्टिविटी और ढांचागत विकास परियोजनाएं आर्थिक पिछड़ेपन के जाल को बहा देंगी, युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि करेंगी, सांस्कृतिक और जातीय संघर्षों को कम करेंगी और क्षेत्र में समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेंगी।

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